...

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वो लड़की!
वो लड़की अच्छी लगती है
न जाने किसकी क्या लगती है,
हर कोई मनमर्जी़ की कहता उसे
पर वो बस अपनी मर्ज़ी सुनती है,
कत्थई सी आँखें है उसकी
पर रात सी गहरी लगती हैं,
रंग भरने का यूँ हुनर है उसमे
मानो ख़ुद भी रंगों से बनती है,
फूलों सी नाज़ुक नहीं है वो
फ़िर खुशबु सी क्यूँ लगती है,
जंगल सी है थोड़ी बहुत
कुछ बाग़ सी मिलती-जुलती है,
यूँ तो है आदम-ज़ाद लेकिन
किसी और दुनिया की लगती है,
कभी मिलेगी तो करने है उससे
य़े जो कुछ सवाल हैं मेरे,
होने से जिसके आबाद है हर बस्ती
वो ख़ुद तन्हाई में क्य़ा करती है।
© सbr