मन व संतुष्टि
न मिले मन से संतुष्टी तब तक
मन इधर-उधर भागता रहता है
न जाने किसे और किसकी
तलाश में भटकता रहता है
कभी चंचल तो कभी उदास,
रहता है
मन यूं ही भटकता रहता है
न जाने कब तक भटकेगा
यूं ही कइओ सवाल मन में
चलता रहता है
कुछ पल ठहरता है फिर
निकल पड़ता है
जीस धार की हवा लगती है
उधर मन बहकने लगता है
उसी उधेड़ बुन में कईओ
दिन तक लगा रहता है
कभी खुद को उसमें नायक
के तौर पर देखा है तो
कभी-कभी दूर-दूर तक खुद को
कहीं नजर नहीं आने देता है
यह चंचल मन न जाने क्यों
और कैसे कहां कहां भटकता
रहता है, ना मिले मन से संतुष्टि
तब तक मन इधर-उधर भागता
रहता है, जब पूरी हो जाती है
एक काम तो फिर तलाश शुरू
कर देता है, मन ना जाने कब
कहां...
मन इधर-उधर भागता रहता है
न जाने किसे और किसकी
तलाश में भटकता रहता है
कभी चंचल तो कभी उदास,
रहता है
मन यूं ही भटकता रहता है
न जाने कब तक भटकेगा
यूं ही कइओ सवाल मन में
चलता रहता है
कुछ पल ठहरता है फिर
निकल पड़ता है
जीस धार की हवा लगती है
उधर मन बहकने लगता है
उसी उधेड़ बुन में कईओ
दिन तक लगा रहता है
कभी खुद को उसमें नायक
के तौर पर देखा है तो
कभी-कभी दूर-दूर तक खुद को
कहीं नजर नहीं आने देता है
यह चंचल मन न जाने क्यों
और कैसे कहां कहां भटकता
रहता है, ना मिले मन से संतुष्टि
तब तक मन इधर-उधर भागता
रहता है, जब पूरी हो जाती है
एक काम तो फिर तलाश शुरू
कर देता है, मन ना जाने कब
कहां...