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आखरी कश
तू मुझमें शामिल इक नशा था ,
जिस्म की हरारत ,आखों की आयाशी ।
तू लबों की चोट ,तो कभी नाखूनों के निशा था ।
अब जो तू नही ,
तो झरोखे के परदे नही लगते ।
आइना देखता नही , कंघे नही लगते ।
तेरी एक आखरी कश मिल जाती ,
उस खुमारी में सारी उम्र गुजर जाती ।
© mukesh_syahi
जिस्म की हरारत ,आखों की आयाशी ।
तू लबों की चोट ,तो कभी नाखूनों के निशा था ।
अब जो तू नही ,
तो झरोखे के परदे नही लगते ।
आइना देखता नही , कंघे नही लगते ।
तेरी एक आखरी कश मिल जाती ,
उस खुमारी में सारी उम्र गुजर जाती ।
© mukesh_syahi
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