...

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हम भी इसी शहर में हैं
हम भी इसी शहर में हैं
सुबह और दोपहर में हैं
महंगी हुई है सद्भावनाएं
यूं मंदी वाली ख़बर में हैं
कौन करें बगावत हमसे
वें सब मेरी नज़र में हैं
ज़ख्म लिखना शौक़ नहीं
बात घुली न ज़हर में हैं
इतना सा बस इल्म रहें
लफ़्ज़ कंटीले बहर में हैं
भागम-भाग लगी रहती है
मज़ा तो पलभर ठहर में हैं
साहिब गाड़ी हैं जो पटरी पर
दुवां कमाल,रब की मेहर में हैं

© पं.रोहित शर्मा