मैं मजदूर हूं
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
सम्पूर्ण धरा के समस्त कार्य कुशलता के धनी श्रमिकों को समर्पित मेरी यह रचना........
तप रही किरणें दिनकर की,
श्रम में तपते श्रमिक हजार,
संघर्षों में वेदित वो व्यापक तन,
अड़चनों में वो दिखते हैं अपार,
अनवरत तप रहा एक नंगा बदन,
उस पर से लू के गर्म शोलों की प्रहार,
कैसी निष्ठुर बैठी है ये जनमानस,
जो कर रही है मलिन शोषण अपरम्पार,
करुणा का प्यास ना...
सम्पूर्ण धरा के समस्त कार्य कुशलता के धनी श्रमिकों को समर्पित मेरी यह रचना........
तप रही किरणें दिनकर की,
श्रम में तपते श्रमिक हजार,
संघर्षों में वेदित वो व्यापक तन,
अड़चनों में वो दिखते हैं अपार,
अनवरत तप रहा एक नंगा बदन,
उस पर से लू के गर्म शोलों की प्रहार,
कैसी निष्ठुर बैठी है ये जनमानस,
जो कर रही है मलिन शोषण अपरम्पार,
करुणा का प्यास ना...