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कभी कभी मैं बिलकुल अकेला रहना चाहता हूं।
कभी कभी मैं बिलकुल अकेला रहना चाहता हूं,
बहुत कुछ कहना है मगर चुप रहना चाहता हूं।
मन में उठ रही लहरों से,
ख्वाहिशों के शुलगते शहरों से,
भीतर दबे अल्फाजों से बात करना चाहता हूं।
किसी बस या ट्रेन की खिड़की वाली सीट में बैठ कर,
यूं ही बाहर देखते रहना चाहता हूं।
कुछ हसीं, कुछ गमजदा खयालों में,
कुछ संजीदा सवालों में,
कुछ वक्त गुम रहना चाहता हूं।
नजरों से सरकते किनारे लगे पेड़,
दूर ठहरा हुआ आसमान,
कल कल करती छोटी सी नदी के साथ बहना चाहता हूं।
कभी कभी मैं बिलकुल अकेला रहना चाहता हूं।
© lekhan🌷
बहुत कुछ कहना है मगर चुप रहना चाहता हूं।
मन में उठ रही लहरों से,
ख्वाहिशों के शुलगते शहरों से,
भीतर दबे अल्फाजों से बात करना चाहता हूं।
किसी बस या ट्रेन की खिड़की वाली सीट में बैठ कर,
यूं ही बाहर देखते रहना चाहता हूं।
कुछ हसीं, कुछ गमजदा खयालों में,
कुछ संजीदा सवालों में,
कुछ वक्त गुम रहना चाहता हूं।
नजरों से सरकते किनारे लगे पेड़,
दूर ठहरा हुआ आसमान,
कल कल करती छोटी सी नदी के साथ बहना चाहता हूं।
कभी कभी मैं बिलकुल अकेला रहना चाहता हूं।
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