...

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क्वारंटाइन
एक महामारी ऐसी फैली,
दो गज़ की दूरी हो गई जरूरी,
घरों में कैद हुई जीवनशैली,
पूरी कर लो बातें, जो रह गईं थीं अधूरी।

उन बाजारों में पसरा है आज सन्नाटा,
जहां खुशियां ढूंढता था इंसान,
गरीबों में बांट दाल और आटा,
कहीं गुम हुई इंसानियत, दिखला रहा आज इंसान।

मंदिर - मस्जिद - गिरजाघर में लगे हैं आज ताले,
बिना किसी चढ़ावे, पुण्य कमा रहा है आज इंसान,
सच कहती हूं, बात मेरी यह मान ले,
देख कर तेरे कर्मों को, खुश हो रहा है आज भगवान।

अंधकारमय इस यज्ञ में,
डॉक्टर - पुलिस - सफाईकर्मी दे रहे अहम योगदान,
कलयुग के इस महायुद्ध में,
तुम ही हो कृष्ण, तुम ही हो राम।