जितने अपने थे सब पराये थे
जितने अपने थे, सब पराये थे,
हम हवा को गले लगाए थे.
जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे.
जितने आंसू थे, सब थे बेगाने,
जितने मेहमां थे, बिन बुलाए थे.
सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं,
सारे किस्से...
हम हवा को गले लगाए थे.
जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे.
जितने आंसू थे, सब थे बेगाने,
जितने मेहमां थे, बिन बुलाए थे.
सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं,
सारे किस्से...