मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
मेरी नहीं खबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
अभी तो आस मेरी अपूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
मुकम्मल छाती की भी अपनी नुरी है।
मैं भी हूं शायर
सोती हूं on क्वायर
© Apoorva
झूठ नहीं मजबूरी है,
मेरी नहीं खबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
अभी तो आस मेरी अपूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
मुकम्मल छाती की भी अपनी नुरी है।
मैं भी हूं शायर
सोती हूं on क्वायर
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