...

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मेरी गजबन
भोली सूरत, मीन सी आंखें, लगता जैसे पुंगल की पद्मिनी हो,
हुस्न, रूह, अदा सब कमाल, लगता जैसे हसीं ख्वाब हो;
चंचलता और स्फूर्ति तुम्हारी, लगता जैसे नभ की दामिनी हो;
रूठना भी ऐसा तेरा, लगता जैसे सागर का सैलाब हो;

तुम्हें ऐतबार तो नहीं पर, लगता जैसे ढोला की मरवण हो,
रेगिस्तान भी मैं तैर जाऊं, लगता जैसे महेंद्र की...