अंजान
ना जाने हम अंजान क्यूं है,
जैसे महताब तलाशते ये आसमान क्यूं है।
सहम जाता हूं तेरे दीदार से मगर,
तेरी खुशबू से महके ये अरमान क्यूं है।
तेरे ख्वाब भी किसी ख्वाब से कम तो...
जैसे महताब तलाशते ये आसमान क्यूं है।
सहम जाता हूं तेरे दीदार से मगर,
तेरी खुशबू से महके ये अरमान क्यूं है।
तेरे ख्वाब भी किसी ख्वाब से कम तो...