मेघनाथ: एक अद्वितीय योद्धा
मेघनाथ: एक अद्वितीय योद्धा
[30-अगस्त-2024]
*****
इक योद्धा ऐसा भी था,जो
जब भी शस्त्र उठाता था
उसके आंखों में क्रोध देख,
सुरपुर तक हिल जाता था [1]
देवता भी जिससे डरते थे,
जो पशुपतास्त्र का ज्ञाता था
रण में इन्द्रदेव को जीतकर,
जो "इंद्रजीत" कहलाता था [2]
जो युद्धकला में था परमश्रेष्ठ
मायावी विद्या अनुगामी था,
सारी अमोघ शक्तियों का,
वो ही तो केवल स्वामी था, [3]
जिसके रण में जाने भर से,
कोहराम चतुर्दिश छाता था
जिसके सम्मुख आ जाने से,
भय स्वयं काल को आता था [4]
जो रण में महाकाल सम था,
और दिल से पितृभक्त भी था
कहते हैं, उस पापी लंका में,
एक.. सच्चा देशभक्त भी था [5]
बहुत दिनों तक रहा अजेय
फिर एक समय ऐसा आया,
एक हठी के कारण लंका पर
था भीषण संकट मंडराया, [6]
अपराजित लंका को अब,
वानर सेना ने था घेर लिया
अतिकाय अकंपन कुंभकर्ण,
आदिक को था ढेर किया [7]
पिता श्री के कृत्यों का अब,
उसको परिणाम चुकाना था
एक योद्धा होने का अब,
उसको कर्त्तव्य निभाना था [8]
सारी माया, सारे अस्त्रों को,
उसने युद्धभूमि में झोंक दिया
नर, देव, दनुज सब थर्राये,
फिर ऐसा भीषण युद्ध किया [9]
पर, धर्म से अधर्म भला,
सोंचों कब तक लड़ पाता है
या तो वो हार मानता है,
या निश्चित ही मिट जाता है [10]
सारा ज्ञान हो गया विफल,
माया ने न कुछ खास किया
फिर भी योद्धा डटा रहा और
अंतिम शक्ति का ध्यान किया [11]
ब्रह्मास्त्र...
[30-अगस्त-2024]
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इक योद्धा ऐसा भी था,जो
जब भी शस्त्र उठाता था
उसके आंखों में क्रोध देख,
सुरपुर तक हिल जाता था [1]
देवता भी जिससे डरते थे,
जो पशुपतास्त्र का ज्ञाता था
रण में इन्द्रदेव को जीतकर,
जो "इंद्रजीत" कहलाता था [2]
जो युद्धकला में था परमश्रेष्ठ
मायावी विद्या अनुगामी था,
सारी अमोघ शक्तियों का,
वो ही तो केवल स्वामी था, [3]
जिसके रण में जाने भर से,
कोहराम चतुर्दिश छाता था
जिसके सम्मुख आ जाने से,
भय स्वयं काल को आता था [4]
जो रण में महाकाल सम था,
और दिल से पितृभक्त भी था
कहते हैं, उस पापी लंका में,
एक.. सच्चा देशभक्त भी था [5]
बहुत दिनों तक रहा अजेय
फिर एक समय ऐसा आया,
एक हठी के कारण लंका पर
था भीषण संकट मंडराया, [6]
अपराजित लंका को अब,
वानर सेना ने था घेर लिया
अतिकाय अकंपन कुंभकर्ण,
आदिक को था ढेर किया [7]
पिता श्री के कृत्यों का अब,
उसको परिणाम चुकाना था
एक योद्धा होने का अब,
उसको कर्त्तव्य निभाना था [8]
सारी माया, सारे अस्त्रों को,
उसने युद्धभूमि में झोंक दिया
नर, देव, दनुज सब थर्राये,
फिर ऐसा भीषण युद्ध किया [9]
पर, धर्म से अधर्म भला,
सोंचों कब तक लड़ पाता है
या तो वो हार मानता है,
या निश्चित ही मिट जाता है [10]
सारा ज्ञान हो गया विफल,
माया ने न कुछ खास किया
फिर भी योद्धा डटा रहा और
अंतिम शक्ति का ध्यान किया [11]
ब्रह्मास्त्र...