...

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लक्ष्मण रेखा
कृष्ण समझ तुझको मैं
राधा सी हर्षाई थी
तेरे स्पर्श के प्रेम राग से
खुदको छोड़ ना पाई थी
खुदको छोड़ ना पाई थी

श्याम समझ तुझको मैं
मीरा सी जोगन कहलाई थी
लक्ष्मण रेखा एक खिची थी
फिर भी उसे पार कर आई थी
फिर भी उसे पार कर आई थी

राम समझ तुझको मैं
शबरी सी भूल ना पाई थी
तुझे देखकर उस पल में
ना जाने क्यों फिर हर्षाई थी
ना जाने क्यों फिर हर्षाई थी

भूल गई थी कलयुग में रीत नई चल आई थी
छुपे तेरे उस दुर्योधन के चीर हरण से
द्रौपदी भी कहलाई थी
द्रौपदी भी कहलाई थी

श्याम नहीं थे तुम
राम नहीं थे तुम
ये सोच सोच अहिल्या सी पत्थर बन आई हूं
क्यों लांघी थी लक्ष्मण रेखा
क्यों लांघी थी लक्ष्मण रेखा
ये सोच सोच अब सीता सी बन आऊंगी
सीता सी बन आऊंगी


© Navi