...

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देखो हो गयी अंधी दुनिया
जाता रोज़ मंदिर-मस्जिद
ढूँढ़ने उस भगवान को
जो मौजूद हर कण कण में है
दीखता नहीं इंसान को

इंसानियत भी खो चूका
इंसान ये कैसा हो चूका
संत महात्मा जगा गए
ये फिर भी देखो सो चूका

न प्रेम दीखता गुरु गोबिंद सा
न कबीर की भक्ति दिख रही
न कोई रहीम सा अब नज़र आये
न कोई मीरा दिख रही

मोह माया सुख विलास में
कितनी डूब गयी ये दुनिया
स्वार्थ में डूबी है ये दुनिया
देखो हो गयी अंधी दुनिया


© IndoreKeGopal