...

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तक़दीर_का_इक_जवाब_समेट_रखा_हूं
तक़दीर के कुछ कोरे जवाब समेट रखा हूं
मैं बदलती तक़दीर का हिसाब समेट रखा हूं
ये खेल तमाशे तक़दीर के हजार यूं ही नहीं
इम्तिहानों को आज बे-हिसाब समेट रखा हूं

अनगिनत तोहफों में ज़ख़्मों का इक ज़िक्र है
तक़दीर की तकलीफों का ख़िताब समेट रखा हूं
भीगी निगाहों में आज कुछ बिखरे बिखरे प्रश्न है
मैं कोरी तक़दीर का इक आफ़्ताब समेट रखा हूं

वक़्त के हाथो वक़्त का लेखा जोखा क्या लिखूं
मैं आज तक़दीर के रंगों की किताब समेट रखा हूं
रोज़ रोज़ के बहाने की अब सुरमई शाम होने लगश
गुज़रते लम्हों से मैं तक़दीर का रुबाब समेट रखा हूं

इसके उसके मिज़ाजों का इक आईना रखें हुए है
बदलती तक़दीर का मैं झूठा ख़्वाब समेट रखा हूं
चारों तरफ इन फितरतों के किस्सों ऐसे सजे हुए है
मैं हर किसी की तक़दीर का हिसाब समेट रखा हूं

कुछ इस तरह इन कोरी कोरी लकीरों को देखते हैं
लबों पे ठहरी हुई तक़दीर का नक़ाब समेट रखा हूं
हाल ए हालातों का मिज़ाज कल के इंतज़ार में है
मैं बदलती तक़दीर का इक जवाब समेट रखा हूं

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes