...

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तेरे खयाल को...
तेरे खयाल को इज़हार बनाकर जीता
तेरी नफ़रत को भी मैं प्यार बनाकर जीता,
बीच रस्तों में बिछड़ जाए मैं वो हाथ नहीं
खुदको मैं तेरा ही हर बार बनाकर जीता।
तेरे खयाल को...
ज़िंदगी रंगों में भीगी सी चुनरिया होती
हर खुशी को उन्हीं रंगों से सजाकर जीता,
ग़र जो मौसम कभी अश्कों का सताता मुझको
मैं हँसी को तेरी त्यौहार बनाकर जीता,
तेरे खयाल को...
तेरे सब ग़म मेरे होते, मेरी खुशियाँ तेरी
चोट खुदको तुझे उपचार बनाकर जीता,
भले खो देता मैं पतझड़ में चाहतें मेरी
ख्वाब हर इक तेरा गुलज़ार बनाकर जीता।
तेरे खयाल को....


© AK. Sharma