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एक लड़का था पहचाना सा
एक लड़का था पहचाना सा
एक लड़की पर वो मरता था
कभी छुप के कभी ज़ाहिर कर के
उसको चिट्ठियां लिखा करता था
इजहारे मुहब्बत करना था शायद
मगर महबूब की रुसवाई से डरता था
इसलिए नाम कभी ना ज़ाहिर करता
खतों के आख़िर में ध्यान से
"तुम" लिख दिया करता था

हर कागज़ पर तुम तुम लिखता
वो शब्दों की मूर्तियां बनाता था
कोई मूर्ति दबी सकुचाई
कोई नटखट झल्ली सी
कोई खड़ी किसी क्रान्ति सी
कोई नाज़ुक तितली सी
पर एक ख़ास थी मूर्ति कवि की
इक्का दुक्का दिल का टुकड़ा नहीं
दग्ध हृदय साबुत उस रवि की
अनंत भावनाओं से सनी
सुंदर मुंदर बनी ठनी
कवि कि की जीवंत कल्पना
कवि की कल्पना में जी उठी
कवि जो अब तक था ध्यान मग्न
थी उसकी तंद्रा टूट चुकी

अब शब्दों की उन मूर्तियों को
बाज़ार या फुटपाथ पर नहीं
हृदय के गर्भगृह में सजाता था
शब्दों की इस देवी को
भावों के आसन पर बिठाता था
नट मण्डप में नाच नाच
अपनी मीरा रिझाता था
तो भोगमंडप में राधा को
शब्दों के भोग लगाता था
अपनी ही धुन में मस्त मगन
शब्दों का स्वयंवर सजाता था
देवी के भाग्य में खुशियां रचता
ये जोगी जोग रचाता था
कभी पूजता कभी झगड़ता
लाख शिकायत करता था
कभी डूबता इश्क नदी में
कभी तैरता रहता था

प्रेम गेम में कभी कभी
ऐसा भी खेल खेलाता था
ख़ुद त्याग का सेहरा बांध के आता
कविताओं के दहेज़ मांगता था
शब्द कलश और शब्द ही काज़ी
शब्दाभूषण शब्द बाराती
शब्दों के मंडप में
शब्दों को ब्याहने आता था

कलियुग में ऐसा प्रेम देख
स्वयं कृष्ण भी दंग हुये
यदि सत्य कहूं तो प्रेम भाव से
प्रेमराज अति प्रसन्न हुये
वो बोले भक्त से अपने
क्या वर मांगोगे बोलो तो
उसके भी ह्रदय में प्रेम जगा दूं
तुम राज़ हृदय के खोलो तो

भक्त कवि था, नहीं कायर था
मन से मगरूर दिल से शायर था
बोला इच्छा पूरी करनी है तो कर दो
जो लड़का उसकी डिजायर था।
यह देख कृष्ण भी धन्य हुये
तथास्तु बोले सहर्ष भक्त से वे
तुझसा कोई प्रेमी नहीं देखा
ना तुझसा प्रेमी अब होगा
प्रेम कवि तू प्रेम के कारण नहीं
प्रेम अब तुझसे जाना जायेगा।

© Neha Mishra "प्रियम"
3/02/2022