...

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सुंदरी
होंठ तेरे गुलाब हैं,
मकरंद ओस करारी सी,
तरकश तेरे नैन कजरारे,
पलकें हया में इतराई सी,
गेसू तेरे उलझे उलझे,
भीनी खुशबू बन मेहकाई सी,
हाये! यौवन तेरा मदमाता है,
और देह तेरी गदराई सी,
उन्मुक्त हवा का झोंका है,
तू सिमटी मुझमें सकुचाई सी,
तू सुंदरी अविरल धारा है,
तुझमें पूर्ण प्रकृति समाई सी!
© ऋतु

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