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तुम अद्भुत मृग नैनी हो
तुम एक ज्वाला सी बेचैनी हो, कभी शीतल हो कभी पैनी हो, कभी कुसुम सुगंध ही बसती हो, कभी चंचल चितवन मृग नैनी हो....!!

हो भला सवेरा धुमिल क्यों, क्यो रात अलख सी काली हो, जब बात तुम्हारे यौवन की तो फिर क्या देना और लैनी हो, हो अलंकृत प्रतिमा सी तुम, बस नयन बसो तुम मृग नैनी हो ।।
© guru_r