...

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मिलेगा क्या
मिलेगा क्या भला कत्ल-ए-आम से
डर ज़रा बंदे तू ख़ुदा के अंजाम से

दो ग़ज़ ज़मी है तेरी ख़ुदा के नाम से
क्यूँ लड़ मर रहा फ़िर तू किसी जान से

बे-ख़बर है क्यूँ तू बंदे ख़ुद की पहचान से
बन बैठा तू क्यूँ हैवान सा ख़ुदा के नाम से

बदनाम है तू लेता नाम ख़ुदा का ज़बान से
लगा मुखौटे है वाकिफ़ ख़ुदा तेरी पहचान से

उठेगा जनाज़ा तेरा भी इक़ रोज़ इस ज़मीन से
भूल बैठा तू ज़ो इस अंजाम को अपने जेहन से।

© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "