...

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असलियत

कुछ साथ नहीं जायेगा।
हमेशा कहा करते वो,
पर जब लागू करनी पड़ी खुद पर,
क्षण भर में बदल गये वो।
मेरे मित्र थे तीन भाई,
डाक्टर था बड़ा भाई,,
पिछले कर्मों का मारा था मंझला भाई,
मेरा दोस्त था सबसे छोटा भाई।
मंझला भाई था अपाहिज,
रहता छोटे भाई के पास।
पिता कर गए वसीयत,
बराबर हिस्सा कर‌,
लिखी अपनी नेक नीयत।
पढ़कर वसीयत बदली छोटे भाई की नीयत।
बोला वह मंझले भाई से,
तुम रहते सदा मेरे पास।
और हो भाई मेरे खास।
कर दो हस्ताक्षर इस कागज़ पर,
और छोड़ दो,
जमीन के सब हक मुझ पर।
मंझले भाई ने जब मुझे बतलाया,
सारा मामला समझ में आया।
ऊंची ऊंची नैतिकता की बातें करने वाले,
निकले अंदर से बहुत ही मतलब वाले।
© mere ehsaas
#writcopoem#writerspen.