...

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आते आते उनका नाम
उनकी आंखो से पैग़ाम आ गया,
उनसे मिलने का अब वक्त आ गया,
इस पहली मुलाकात से मुझे वो पल याद आ गया।

किसी राह के मोड़ पर सायकिलें टकरा जाना,
उनके उन गुलाबी होठों से मुझ पर चिल्लाना ।
फिर धीरे से दुपट्टा संवारते हुए,
लटो को कानों के पीछे लिए जाना।
फिर सॉरी कहते हुए हमारी किताबे समेटना,
फिर हमारा भी उनसे माफ़ी मांगना।
इसपर हम दोनों का हसते हुए सायकिलें उठाना,
फिर झिझकते हुए हमारा उनसे उनका नाम पूछना,
हमारा फ़ैज़ और आपका......सकीना।
फिर मिलेंगे कहकर अपनी राह मूड जाना,
मेरा उन्हें जाते हुए आशिकी भरी निगाहों से देखते रहना।

मुलाकातों का सिलसिला फिर यूहीं शुरू हो गया,
कभी बाजार में तो कभी लाइब्रेरी में वही चेहरा फिर दिख गया।
लेकिन उस दिन उन्होंने मेरी आंखो में लिखा अफसाना पढ़ लिया,
फिर धीरे से आकर हमसे बोली आपको हमसे मिलना है ये हमने जान लिया।

फिर बातें बढ़ी और मुलाकात मुकद्दर हुई,
आज पहली दफा फुरसत से उनसे मुलाकात हो ही गई।
फिर पता चला वो तो हमारी अम्मी की ही कोई रिश्तेदार है,
हम मन ही मन मुस्कुराए और समझे कि हमारी राह आसान हो गई।

फिर एक दिन उनके भाई के निकाह का इन्विटेशन आया,
पूरे परिवार समेत आना ऐसा खास पैग़ाम भिजवाया।

निकाह के बाद रात को दोस्त रिश्तेदारों की मैफिल सजी,
हमने उनके लिए लिखा हुआ नगमा
हमारे दोस्त ने सबको सुनाया।
इसपर हमारी टांग खूब खींची गई,
हमे आपका नाम बताने को कहा गया।
हमने चुपके से एक नजर आप पर भी डाली,
आपकी आखों में हया थी और गालों पर शर्म की लाली।
आपने ना में अपना सिर हिलाया,
और हमने बहाने से बात को टाल दिया।
सबके सामने नाम लेने से हमारे महबूब दोस्त रिश्तदारों में बदनाम हो जाते,
इसलिए उनका नाम हमारी जुबां पर आते आते रह गया।
© Dimpi