...

4 views

माहौल
कंकालों सी कंम्पन करती क्राह रही है ये बसुधा।
रक्तरंग में रक्तांचल से कांप रही है,ये बसुधा।
रंग-रंग के पुष्प यहां अब तो मुरझाए लगते हैं।
पाप वाष्प से गति तिब्र से,नाच रही है ये बसुधा।
कनक भाव से कनक वास्ते पाप पुण्य सब होता है।
जल प्रलय से क्रोधाग्नि का खेल दिखाती है बसुधा।
स्व रचित-अभिमन्यु (अभि)

Related Stories