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प्रेम कल्पना बिन अर्द्धनारीश्वर, बहुधा नश्वर
नहीं छोड़ते हाथ, साथ
पुचकारते वो हर बात
माता-पिता और सच्चे रिश्ते
ज़िंदगी बीत जाती हंसते-खेलते

रिश्ता समझना कितना आसान है
ज़मीन पाताल तक, ऊंचाई आसमान है
साथी , साथ देने-चलने वाला
प्रेमी, प्रेम लेने- देने वाला
इससे ऊंचा जन्म कारक वाला

मात पिता की सच्चाई पहले जैसी
साथी-प्रेमी, रिश्तों की उड़ा देते हंसी
हम फिर कैलास, बनारस की बात लायेंगे
कथा त्रिलोकीनाथ की सुनाएंगे
शिव सबके रचयिता हैं
माता पिता हैं
प्रेम बिन अर्द्धनारीश्वर
बहुधा नश्वर !
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