...

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शब्द हमारे लिए ईश्वर का स्वरूप है।,
किस तरह से जीवन के हर पहलू में
हम अनजान हो जाते हैं
जीवन के हर मायने को देखते हुए भी
समझने की जरूरत ही नहीं समझते हैं!
यह कैसी विडंबना है ना खुद में!
जो हमें हमारे ही परिचय से दूर रखती है
और हर उन ख्यालों में बाद्य करती हैं
जो शायद हमारे लिए ही बना नहीं है
यह कैसी अजीब विडंबना है यह जीवन !?
विचार तो करना है!!
हर उन सुर्ख़ियों से हमें गुजरना पड़ता है,
पर हम फिर भी सत्यता को ही समझने में कहीं कतराते हैं! बस उन आशाओं के पीछे भाग पड़ते हैं
जो...