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मौन की सरगोशियाँ
#ज्ञानकीफुसफुसाहट
शोर भरे उन लम्हों में जब वार्ता लाप असंभव हो जाता है,
कौन है वो जो मेरे कानों में धीरे से कह जाता है?
कि मन को शांत करना उसी क्षण सीख जाओगे,
जब बोलोगे कम और ज़्यादा सुनना सीख जाओगे।

तस्वीर देखती हूँ जब भी नानी माँ की, जैसे वो तस्वीर बोल उठती है,
कि जब सुख ही न रहा, तो ये दुख कैसे टिक पाएगा,
तुम निरंतर प्रयास करती रहो,
सवेरा तुम पर भी मुस्कुराएगा।

चलते-चलते जीवन पथ पर अक्सर भटक जाया करती हूँ मैं,
जीवन इतना कठिन क्यों है?
ये ख़ुद से पूछा करती हूँ मैं।
क्या सही वक्त पर सही दिशा पर चल निकली हूँ?
ऐसा सोचा करती हूँ मैं।

तब किसी किताब के किसी पन्ने की वो बात मेरे ज़ेहन में गूंज जाती है,
कि हर भटकने वाली सोच गुमशुदगी नहीं दर्शाती है,
कुछ गुमशुदा सोच-विचार हमें मंज़िल की तरफ भी ले जाते हैं।

प्रातःकाल की शांति, जहाँ ओस पत्तों को चूमती है,
महसूस करती हूँ हवा की सरग़ोशियाँ जो मुझसे कह जाती हैं,
मन के घुमावदार रास्तों पर बस इतनी सी बात याद रखना,
ख्वाब चाहे जितने देखो लेकिन जहाँ हो उसका शुक्राना करती रहना।
#WritcoPoemChallenge #hindipoetry
© Haniya kaur