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दो चार कदम.....
दो चार कदम पे तुम हो
सात समुद्र पार पे हम है,
जो दूरियां रोक ना सकी,
वो अब मीलों से भी कम है।
जीना है तो हंस के जियो,
फिर चाहे कितने लाख गम है।
ये जीवन फिर किस मतलब का,
जब अपनों से रूठे हम है।
अब तो गिले-सिकवे भूल भी जाओ,
वैसे ही जीने के दिन कम है।
क्यों खफा-खफा से रहते हो,
क्या गैरों से कम हम है।
बोलो लो बोल दो मिट्ठे ,
फिर सब अपने हमदम है।
इज़हार वफ़ा का करके,
खुशियों से अँखियाँ नम है।
दो चार कदम पे तुम हो
सात समुद्र पार पे हम है,
जो दूरियां रोक ना सकी,
वो अब मीलों से भी कम है।
© highratedmaan
सात समुद्र पार पे हम है,
जो दूरियां रोक ना सकी,
वो अब मीलों से भी कम है।
जीना है तो हंस के जियो,
फिर चाहे कितने लाख गम है।
ये जीवन फिर किस मतलब का,
जब अपनों से रूठे हम है।
अब तो गिले-सिकवे भूल भी जाओ,
वैसे ही जीने के दिन कम है।
क्यों खफा-खफा से रहते हो,
क्या गैरों से कम हम है।
बोलो लो बोल दो मिट्ठे ,
फिर सब अपने हमदम है।
इज़हार वफ़ा का करके,
खुशियों से अँखियाँ नम है।
दो चार कदम पे तुम हो
सात समुद्र पार पे हम है,
जो दूरियां रोक ना सकी,
वो अब मीलों से भी कम है।
© highratedmaan
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