...

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आज भी है..!
रह जाऊँ मैं सिमट कर तुझमें , ये दिल-ए-ख्वाइश मेरी आज भी है..
टूट जाऊँ , तो टूट कर समा जाऊँ मैं तुझमें , तमन्ना-ए-दिल-ए ख़ास एक आज भी है..!

ढूँढूं मै तुझको , जो आज मुझमें कहीं , तेरा अक्स मुझमें जिंदा आज भी है..
पाऊँ जो तन्हा मैं खुदको , सफ़र-ए-जिंदगी में , महसूस-ए -हमसफर का एहसास आज भी है..!

नज़्म जो लिखूँ , तो तेरा ही ख्याल आता था तब मुझे , और ये कायम आज भी है...
जिस्म से दूर रह कर तु था तब दिल के करीब मेरे , और ये हालात बरकरार ,आज भी है..!

जयश्री✍🏻