मुझपर ही मेरे दुश्मन का इश्तिहार छपा है.....
कोरे काग़ज़ की राख बना कर पूछो
उसमें क्या छिपा है
उसने कितने ख्वाबों को जिया है
कितने दर्दों को पिया है ...
उसमें क्या छिपा है
उसने कितने ख्वाबों को जिया है
कितने दर्दों को पिया है ...