...

3 views

एक परिंदा 🪶
एक परिंदा उड़ चला है,
जाने, ना जाने किस खोज में वह।
ऊठा वह कमतर से जब से अपनी,
ना रुका वह शम्स ताप से भी कभी।

पवन को समेट, अपने परवाज़ में,
उड़ चला है आगे की ओर।
बादलों की छाँव में छुपा,
वह शम्स को भी राह दिखाता है।

ना ठहरना वह जाने,
ना तूफानों से घबराता है।
एक परिंदा जाँबाज वह,
जो हवा से मेल मिलाता है।
© a_quirky.poet