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कैसे बने वासुकि हर के हार ।
*कैसे बने वासुकि हर के हार।*

1. अपने माँ के माँ कहने मे आता था वासुकि को लाज।
क्योंकि वासुकि थे कद्रू के रहन-सहन से नाराज।

2. दूर करना चाहते थे वासुकि अपनी यह समस्या।
इसलिए हिमालय पर्वत पर जाकर करने लगे शिवजी की तपस्या।

3. एक दिन देव दल और दानव दल पहुचे वासुकि के द्वार।
और वासुकि के समक्ष रखे नेती बनने का प्रस्ताव।

4. तब वासुकि बोले पहले आप लोगों का बहुत-बहुत स्वागत हम जो आप आए हमारे शरण ।
किंतु मुझे नेती बनने के पिछे क्या है असली कारण।।

5. तब देव असुर बोले हमलोग मधने जा रहे समुद्र।
इसलिए आपके नेती बनने के लिए कर रहे हैं आग्रह।।

6. बहुत गहरा है समुद्र का पानी।
इसलिए मंदराचल पर्वत को हमलोग बनाए है मथानी।।

7. समुंद्र से जो भी रत्न निकलेगा उसे हम बाट लेगे आधा आधा।
अपको एक खरोच भी नही आएगा ये है हमसब का वादा।।

8. तब तव हो गए वासुकि नेती बनने के लिए तैयार।
और शुरू हो समुद्र मंथन का कार्य।।

9. बहुत पिड़ा हो रहा था वासुकि को समुद्र मंथन के दौरान।
अपने भक्त का सहनशक्ति देख शिव जी थे हैरान।।


10. जब समुद्र मंथन समाप्त हुआ और अमृत पाने के लिए देव दानव कर रहे थे एक दुसरे पर प्रहार।
तभी शिवजी पहुंचे अपने भक्त वासुकि के द्वार।


11. और बोले मै आप के भक्ति से प्रसन्न हु इसलिए अब से मे ना पहनुंगा कोई आभुषण और न ही करुंगा कोई श्रृंगार।
अब से आप बन जाईए मेरे गले का हार।।

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