...

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बहना चाहता है कोई आँखों से 🙃
नींद होती है आँखों में
पर सोता नहीं है

बहना चाहता है
कोई आँखों से
पर रोता नहीं हूँ

कहने को तो
कभी दफ्तर में
कभी दोस्तों में
कभी घर में होता हूँ

फिर भी अनभिज्ञ सा हूँ
कौन क्या बोला मुझसे
क्योंकि मन से अब
कहीं मैं होता नहीं हूँ

अच्छा नहीं लगता
मुझे sympathy लेना किसी से
मुस्कुराता रहता हूँ
मैं अब इन ग़मों को कहता नहीं हूँ

नए लोग आते थे जिस
दरवाजे से वो दरवाजा बंद कर दिया
अब सिवाय खुद के मैं किसी का
होता नहीं हूँ

सच कहूँ तो कहता हूँ
उदास होता कोई तो
कान्हा जी है ना गीता पढ़ो
और खुद मैं अब कोई
किताब पढ़ता नहीं हूँ

इक पल को लगता है
छोडकर चल जाऊँ सब
अंधेरा ही है चारो और वैसे भी मेरे
अंधेरे से अब मैं डरता नहीं हूँ

अच्छा तो नहीं लगता
ये रोना धोना लिखना
अपनी शायरी में
पर दिल हल्का करने को
लिखता हूँ

ये खूबी मानो या
कमी मेरी मैं जैसा हूँ
वैसा कभी दिखता नहीं हूँ




© ❤️‍🩹