...

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इन्कलाब
अब तक हारा नहीं था पर थकता जरूर था
कुछ किया नहीं पर करने की चाहत का गुरुर था..
दुश्वारियां, मजबूरियां रहती थीं मगर
दिल में मस्ती,ख़ुद्दारी , आंखों में नूर था..

पल में बनते मिटते थे जिंदगी के फ़लसफ़े
नाउम्मीदी का आलम कोसों दूर था....
पर आज थकने के साथ हार गया
पस्त हूँ,नाउम्मीद भी ,जिंदगी से प्यार गया..

बहारों का मौसम चला सा गया...