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" शहादत ए मुहब्बत "
जब जब आशिक़ों को
दुनियां ने दर्द ए सितम ढाएं हैं
छिन गई मुहब्बत चली गई जां
निसार हो गई सारे ज़माने की खुशियां
हीर रांझे के ज़माने से चली आ रही है
नफ़रत की वो बगावत
दो सच्ची वफ़ाओं को जीने न दिया
लैला मजनू मुहब्बत के पीर समझे जाते थे
उन्हें भी शहादत ए मुहब्बत मिली
दुश्मन है ज़माना मुहब्बत और नेकी की...