...

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बचपन.....माँ के साथ
जब छोटे थे
छोटी छोटी बात पर रूठ जाया करते
मा को देखकर ही दूर से दो-चार पानी की बूंदे भी गिरा दिया करते
जब लगता था उनका ध्यान नहीं हम पर देखते सिसकियां भी भरने लगते
जब मां को मालूम होता पास आती थी कस के गले लगाती थीं
देखकर खुद भी उदास हो जाती
पर कभी-कभी जब मां के मना करने पर भी बाहर जाया करते
चोट लगा कर जख्मी होकर साईकिल पैदल लाया करते
सिसकियां भरते रोते-रोते जब मां के पास है जाते .......🥺🥺
मां पास बुलाती लाड- लड़ाती और कहती दिखा कितनी लाया लगाके
पास आते ही डंडा लाती और बोलती दो-चार थप्पड़ lgake
अब मैं भी देखती हूं दोबारा तू जरा दिखा जा के
फिर हम भी कहां थे,मानने वाले ,सोचते विचारते बैठे -बैठे .....जब मां से नहीं बनती भी थी बात तो पापा के पास जाते
पापा को रोते -रोते अपने घाव दिखाते, पापा को देख.....दया आ जाती है और खुल्ले पैसे दे जाते कोई बात नहीं चीज खा लियो कहकर वह काम पर चले जाते
एक दो का सिक्का मिलते ही हम ऐसे घूमते जैसे शहजादे
5 का अगर हो सिक्का तो दो ,चार दोस्त और मंडराते
क्या हसीन बचपन था ......क्या थे दोस्त हमारे खो गया बीत गया अब तो हो गए जमाने🤗🤗🤗🤗😊😚😍🥰🥰
© sk jorwal😊