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क्यों?
सरे आम बिकती है खुश्बू अब बाजारों मे
क्यों मैं तेरे गुलशन की गुलनार नहीं?
हाथ थाम के चलेंगे अपनी मंज़िल की और
क्यों मैं अब तेरी हमराह नहीं?
आज भी बंध मुट्ठी मे कैद है तेरे एहसास
क्यों तेरे हाथ मे मेरा हाथ नहीं?
तुझे माफ है खून भी मेरा ,मेरे ख्वाबो के कातिल
क्यों ज़िंदा लाशों का कोई कब्रिस्तान नहीं?
© All Rights Reserved
क्यों मैं तेरे गुलशन की गुलनार नहीं?
हाथ थाम के चलेंगे अपनी मंज़िल की और
क्यों मैं अब तेरी हमराह नहीं?
आज भी बंध मुट्ठी मे कैद है तेरे एहसास
क्यों तेरे हाथ मे मेरा हाथ नहीं?
तुझे माफ है खून भी मेरा ,मेरे ख्वाबो के कातिल
क्यों ज़िंदा लाशों का कोई कब्रिस्तान नहीं?
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