...

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जाति 2.0
तड़प रहे थे लोग यहाँ
थे भटक रहे तेरे दर पे,

शक्तिशाली हो फिर भी
तुम देख रहे थे ऊपर से,

हम मर रहे थे खेतों में
फसल लगाने को उनके,
वो मचल रहे थे अपने मन में
और बोझ ढुआने को हमसे,

शूद्र बताकर बहा रहे थे
खून को ओ मेरे तन से,
ईर्ष्या में...