नए सफर में...
थम सी गई थी जिंदगी, और सब रुक सा गया था,
ख़ामोश थी जुबां और सिर कंधो पर झुक सा गया था,
लब्ज़ सुख गए थे कंठ में, मन उद्विग्न उलझ सा गया था,
आंखे वीरान सी, पलको का परदा कुछ झुलस सा गया था,
और जमाने ने होठ सिल दिए मेरे यह कहकर
हक नहीं है काफ़िर तुझे कुछ...
ख़ामोश थी जुबां और सिर कंधो पर झुक सा गया था,
लब्ज़ सुख गए थे कंठ में, मन उद्विग्न उलझ सा गया था,
आंखे वीरान सी, पलको का परदा कुछ झुलस सा गया था,
और जमाने ने होठ सिल दिए मेरे यह कहकर
हक नहीं है काफ़िर तुझे कुछ...