...

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कितना अच्छा होता
जो तेरे साथ वो पहली मुलाकात ना होती
नजरे मिलाकर आंखें चार ना होती

वो तेरे हसीन चेहरे का मेरी आंखों को दिद ना होती
मुस्कान वो आशिकाना तेरे चेहरे पे जो न होती

यूं तेरे बालों को झट्टके जो तू समा ना बनाती
इशारों में जो तू मेरे इश्क का किताब ना लिखती

मेरा यूं तेरे पीछे दीवाना बन ना फिरना होता
ना ही मैं एक ही पल में हजार सपने बुनता

ना तेरे साथ मैं इश्क ए सफर दिल के किताब में बयान करता
ना तेरा मुझे छोड़ के यूं जाना होता

में भी बेफिक्र मैं अपनी जिंदगी जिया करता
आवारा ही सही बादशाह कहलाता

यूं काफिर का खिताब ना मिलता
ना ही मिलती इश्क ए रुसवाई

होता मैं भी चैन और सुकून से
भीड़ में यूं तन्हा ना खड़ा होता

ना ही ढूंढती नजरें मेरी तुझे हर चेहरे मैं
यूं तेरी सोच मैं एक दम से हंसते हंसते चुप ना होता

दोस्तों से यूं खफा ना होता
हर महफिल में दिल गुलजार होता

ना होता दिल मेरा जार जार हर दफा
ना होती तेरे इश्क की तलब ए वफा

होती ना यूं अधूरी कहानी
ना ही होती यूं आधी सी आस रूहानी

कितना अच्छा होता जो तो ना मिली होती
ना होता तेरा इल्म मेरे दिल को

ना होता मेरा रूह यूं मुझसे अलग
में भी खोया ना होता

जागते हुए मायूस यूं सोया ना होता
होता कदर खुदकी

ना इस कदर दर बदर ना होता
कितना अच्छा होता जो तू मिली ना होती

© vexinkheart