...

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लकीरें
मनुष्य लकीरें हैं..
आड़ी टेढ़ी लकीरें,
बस यूं ही खींच दी गईं
समय के पटल पर..

प्रतिच्छेदी रेखाओं की तरह,
कुछ के रास्ते काटते परस्पर;
कुछ थोड़ी सी लचीली,
घूमकर चली जाती
आस-पास से,
अपने रास्ते की तलाश में..
कुछ, दूसरों से बड़ी होने के
प्रयत्न में जुटी,
बढ़ाती जाती अपना कद;
कुछ काट कर करती जाती
दूसरों को बौना..

कुछ परिधि में बंध कर
घूम रहीं अपनी धुरी पर,
अनंत कोने लिए
हर दिशा से संतुलन में..
कुछ नियत कोने लिए
मानकों से बंधे,
नियति में ढले...