...

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त्याग।
#दूर
दूर त्याग बन कर घूम रहा है कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा है कोई;
हम से पूछो मेरी कल्पना का भी सार।
समस्त अग्नि मे अब भी जल रहा है कोई;
एक आस तब भी आई थीं वयंग मे सदिया बीती।
फासले अधूरे रहे इंतजार में अब भी यादें बुंद रहा है कोई।
कैसे चाहु अपनी राख को अपनी ही साशो में जल रहा है कोई ;
एक हाजरी मेरी भी लगी इन्तहा की ।
अब हद से अक्सर गुजर रहा है कोई।
अब हम से अक्सर बिछड़ रहा है कोई ।



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