...

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मैं_तुम्हें_लगे_लगाकर_जीना_चाहता_हूं
तुम्हारी धड़कनों को करीब से सुनना चाहता हूं
मैं तुम्हें लगे लगाकर थोड़ा ओर जीना चाहता हूं
सांसों का इक इक लफ़्ज़ ख़ामोशी से समेटे है
मेरी मोहब्बत पे तुम्हारी बांहों का पहरा चाहता हूं

तुम्हारा नाम अपने नाम के साथ ऐसे लिखते है
तुम्हें लगे लगाकर जमाने भर में चर्चा चाहता हूं
मेरी कहानियों में तेरी निशानियां बयां करनी है
मैं तुम से तुम्ही धड़कनों का इक सौदा चाहता हूं

आहिस्ता आहिस्ता लबों पे मोहब्बत की बातें है
तुम्हें लगे लगाकर यूं ही नहीं बे-परवा चाहता हूं
एहसासों को जज़्बातों साथ कुछ कहने चले है
मैं ऐसे ही ताउम्र तेरे साथ की तमन्ना चाहता हूं

खुद को आज तुम्हारे दामन से यूं बांधने चलें है
तुम्हें लगे लगाकर थोड़ा सा मुस्कुराता चाहता हूं
निगाहों में इज़हार की बातें वाते यूं पढ़ने लगे है
हमारी मुलाकातों पे रातों का इक पर्दा चाहता हूं

धड़कनों का हिसाब किताब आज लेकर बैठे है
मैं तुम्हें लगे लगाकर थोड़ा ओर जीना चाहता हूं
ज़िंदगी को इश्क़ के रंगों से सराबोर करने चले है
तुम्हें बांहों में भर मैं खुद को आज़माना चाहता हूं

© Ritu Yadav
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