...

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बेवजह क्यों ?
जो बिछड़ना है तो मिलना क्यों
जो दुआ कर सकते हो तो बद्दुआ क्यों
जो कर सकते हो किसी का इंतजार
तो जल्दबाजी में इतना भागना क्यों
जब कर सकते हो विश्वास
फिर बेवजह का शक क्यों
जब तोड़ने है वादे रस्में
फिर उन्हें तोड़ना क्यों
उनमें बेवजह बंधना क्यों
जब कर सकते हो प्रेम
तो इतनी घृणा क्यों
जब बोल सकते हो
मृदुभाषा तो बोलना इतना कड़वा क्यों
जब निश्चय कर ही लिया
तो इतना सोचना क्यों।
जब बात मत की ही नहीं
फिर इतना प्रपंच क्यों
जब आगे बढ़ चुके इतना
तो पीछे मुड़कर देखना क्यों।
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