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बेवजह क्यों ?
जो बिछड़ना है तो मिलना क्यों
जो दुआ कर सकते हो तो बद्दुआ क्यों
जो कर सकते हो किसी का इंतजार
तो जल्दबाजी में इतना भागना क्यों
जब कर सकते हो विश्वास
फिर बेवजह का शक क्यों
जब तोड़ने है वादे रस्में
फिर उन्हें तोड़ना क्यों
उनमें बेवजह बंधना क्यों
जब कर सकते हो प्रेम
तो इतनी घृणा क्यों
जब बोल सकते हो
मृदुभाषा तो बोलना इतना कड़वा क्यों
जब निश्चय कर ही लिया
तो इतना सोचना क्यों।
जब बात मत की ही नहीं
फिर इतना प्रपंच क्यों
जब आगे बढ़ चुके इतना
तो पीछे मुड़कर देखना क्यों।
© ✍️ Div
जो दुआ कर सकते हो तो बद्दुआ क्यों
जो कर सकते हो किसी का इंतजार
तो जल्दबाजी में इतना भागना क्यों
जब कर सकते हो विश्वास
फिर बेवजह का शक क्यों
जब तोड़ने है वादे रस्में
फिर उन्हें तोड़ना क्यों
उनमें बेवजह बंधना क्यों
जब कर सकते हो प्रेम
तो इतनी घृणा क्यों
जब बोल सकते हो
मृदुभाषा तो बोलना इतना कड़वा क्यों
जब निश्चय कर ही लिया
तो इतना सोचना क्यों।
जब बात मत की ही नहीं
फिर इतना प्रपंच क्यों
जब आगे बढ़ चुके इतना
तो पीछे मुड़कर देखना क्यों।
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