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सिंगार
क्यों सताते हो तुम हमको
अपनी माथे की बिंदिया हटाकर
जैसे सताते हो दिन रात हमको
किसी गैर को यू सता के तो देखो
पहली फुर्सत में यूं निकल जाएंगे कि
दोबारा मिलने की बात भी नहीं करेंगे
हम हैं तो हमारी कदर करो
बस बिंदिया से अपना सिंगार करो
हम फिर हंस के देख लेंगे
चाहे तुम कितना भी सताया करो
© its_poetic_devpragya
अपनी माथे की बिंदिया हटाकर
जैसे सताते हो दिन रात हमको
किसी गैर को यू सता के तो देखो
पहली फुर्सत में यूं निकल जाएंगे कि
दोबारा मिलने की बात भी नहीं करेंगे
हम हैं तो हमारी कदर करो
बस बिंदिया से अपना सिंगार करो
हम फिर हंस के देख लेंगे
चाहे तुम कितना भी सताया करो
© its_poetic_devpragya
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