कब आए सवरियां
पकत बेरियां आम बउरिया,
आए बसंत की झरझर पूछें,
अट्टहास कर गई बयरिया,
काह खबर कब आए सवरियां।
मन झुंझलाए तन मोरा रीझे,
सुन सुन बतियां नैना सीझे।
बन बैठा हृद प्रेम का राही,
चुटकी लेती अलसी लाही।
भोर धूरि- धूरि हुई अब,
राह निहारत अखियां रुठी।
रंग फगुन कहे ऐसे उड़े रे,
जैसे उड़ी है मोरी चुनरिया।
काह खबर कब आए सवरियां।।
छूट रहीं हैं श्वास गात से,
संदेह मिलन होगा प्रभात से।
आस लगाए मधुकर तेरी
बीत गया मधुमास बेचारा ।
विह्वल डारी निर्जल हो गई
मिला न प्रीति का तेरे सहारा,
ऊब गये अब गली- दरीचे
तंग करें कह द्वार, अटरिया।
काह खबर कब आए सवरियां।
भींच के नैन निहारूं कब तक।
जो गया जान से भ्रमर भटक।।
© अवनि..✍️✨
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