...

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नया रिश्ता बनाना है...
आज हमें एक नया शुरुआत करना है
खुद से ही खुद की जंग का आगाज़ करना है,
प्रतिकूल परिस्थितियों से उत्पन्न
राग द्वेष के कौतूहल की अग्नि को
अंतर्मन के शीतल वाणी के जल से बुझाना है
दुनिया रूपी क्षीर सागर से उत्पन्न
कड़वाहटों के हलाहल को समेट खुद के कंठ में
खुद से हृदय से उत्पन्न अमृत से माफ कराना है
खुद को ही बताना है
खुद को ही समझाना है
खुद को ही धमकाना है
खुद को ही मनाना है
खुद से ही खुद को हराना है
और खुद से ही खुद के साथ एक रिश्ता नया बनाना है_!!
© दीपक