...

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मैं क्या बन कर रहना चाहती हू
मैं हूं तो कुछ भी नहीं
बाकियों से भिन्न नहीं
मैं भी मानव कसौटी पे कसा
उस खुदा के बाकी बंदों की तरह
मैं भी उनका रचा एकमात्र रूप हूं
मैं अपने इस स्वरूप को बिना किसी मिलावट के
नैतिकता से भरे बिना किसी द्वेष के
बिना किसी बनावटी भेष के
उस कृष्ण के गीता के संदेश से
मैं उस परमात्मा के विचारों के निर्मल धारा में बहना चाहती हूं
उनसे प्रेरित होकर मैं इक नेकदिल इंसान रहना चाहती हूं
इस जहां रूपी कीचड़ में कमल की तरह खिलना चाहती हूं
धार्मिक बन मैं फिर इस जहां को अलविदा कर
फिर उसी परमात्मा रुपी तत्व में मिलना चाहती हूं


© Poetry Girl