"प्यास"
नित-नित सोचे,आस न खोए
कहे वो कैसे, शब्द न होए।
मन की विपदा, धूप सी सोहे
एक सकल न, सौ-सौ निगोहे।
जीव प्यास, न जाने कोए
श्वास कण्ठ तक, जगत संजोए।
© प्रज्ञा वाणी
कहे वो कैसे, शब्द न होए।
मन की विपदा, धूप सी सोहे
एक सकल न, सौ-सौ निगोहे।
जीव प्यास, न जाने कोए
श्वास कण्ठ तक, जगत संजोए।
© प्रज्ञा वाणी