...

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अगर तुम न होते उजाला न होता
अगर तुम न होते उजाला न होता
नहीं रात जाती सवेरा न होता

हसीं ज़ुल्फ के तेरे साये घनेरे
कहाँ जाते जो ये ठिकाना न होता

दिशा भूल जाते भटकते यहाँ पर
तेरी आँखों का जो इशारा न होता

बड़े हो रहमदिल किये हो मदद भी
ज़माने में तुम बिन गुज़ारा न होता

चमन भी न होता नहीं फूल खिलते
यहाँ नूर तेरा जो आया न होता

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
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