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जो पीछे होता है वह सबसे आगे आ जाता है!
विवेकानंद ने जगह-जगह जाकर यही कहा कि मुझे देखकर मेरे गुरुदेव का आँकलन मत कर लेना, मुझे देखकर मेरे गुरुदेव के ज्ञान के बारे में सोच मत लेना, मैं तो उनके समक्ष कुछ हूँ ही नहीं, अहं तस्य दासानुदास- अथार्त " मैं तो उनके दासों का दास हूँ, और परिणाम ये हुआ रामकृष्ण ने विवेकानंद को खुद के हृदय में बैठा लिया, और स्वयं के बराबर का स्थान दे दिया, अगर विवेकानंद जरा सी भी अहंकार की कलाकारी दिखाते तो रामकृष्ण के समीप न आ पाते, क्योंकि रामकृष्ण खुद कलाकारों के कलाकार हैं, वे विवेकानंद की इस चाल को समझ जाते, लेकिन विवेकानंद ने गुरु के प्रति अगाध प्रेम रखा, और आज आप घर बैठे विवेकानंद का नाम जानते हैं, ये कम है क्या?
© ◆Mr Strength